इस दिल की गहराई को कोई नापता नहीं
आधे अधूरे मिसरे
इस दिल की गहराई को कोई नापता नहीं
दुनिया में पाप करके, कोई कांपता नहीं।
नंगें वदन को आज , कोई ढापता नहीं।।
कुछ लोग अपनी बात , सुनाते हैं जबरियां।
उनकी तरह से जानवर, भी चापता नहीं।।
माना कि सर्दियों में , आग काम की बहुत।
गर्मी में आग कोई , कभी तापता नहीं।।
उल्फत में भले मुझसे, दूर तुम बसे हो पर।
आऊंगा एक दिन मैं , तुम हो लापता नहीं।।
रावत तुम्हारे बिन मैं , किसे हाल ए दिल कहूं।
इस दिल की गहराई को ,कोई नापता नहीं।।
रचनाकार ✍️
भरत सिंह रावत
भोपाल मध्यप्रदेश
Shashank मणि Yadava 'सनम'
08-Sep-2023 06:57 AM
बेहतरीन
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Varsha_Upadhyay
08-Aug-2023 08:47 PM
बहुत खूब
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