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इस दिल की गहराई को कोई नापता नहीं

आधे अधूरे मिसरे 
इस दिल की गहराई को कोई नापता नहीं

दुनिया  में  पाप  करके,  कोई  कांपता  नहीं।
नंगें   वदन   को   आज , कोई ढापता नहीं।।
कुछ लोग अपनी बात , सुनाते हैं जबरियां।
उनकी तरह से जानवर, भी  चापता  नहीं।।
माना कि सर्दियों में , आग काम की बहुत।
गर्मी  में  आग  कोई , कभी  तापता  नहीं।।
उल्फत में भले मुझसे, दूर तुम बसे हो पर।
आऊंगा एक दिन मैं ,  तुम हो लापता नहीं।।
रावत तुम्हारे बिन मैं , किसे हाल ए दिल कहूं।
इस  दिल  की  गहराई  को ,कोई नापता नहीं।।
रचनाकार ✍️
भरत सिंह रावत
भोपाल मध्यप्रदेश 


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2 Comments

बेहतरीन

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Varsha_Upadhyay

08-Aug-2023 08:47 PM

बहुत खूब

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